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पर्यावरण को नष्ट करे एैसी उन्नति मनुष्य के लिये व्यर्थ है

कानपुर (अभिषेक धारिया). आज हर इंसान अपने जीवन में सफल होना चाहता हैं और इसीलिए वह प्रतिदिन मेहनत करता है ताकि वह एक दिन सफल हो जाए और सफल होकर इतना धन कमा ले ताकि वो अपनी जरूरत कि प्रत्येक वस्तु को आराम से खरीद सकें। परन्तु प्रकृति से प्राप्त अमूल्य पूँजी पर्यावरण को वह प्रतिदिन नष्ट कर रहा हैं। कितना भी सफल मनुष्य ही क्यों न वह कभी प्राकृतिक धन को नहीं खरीद सकता। 



मनुष्य अपने निजी जीवन में भले ही सफल और उन्नतिशील हो रहा है, लेकिन वास्तविक जीवन में प्रकृति का धन वह हमेशा के लिए खो रहा है, जिसे वह दोबारा चाहकर भी नहीं पा सकेगा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण वर्तमान समय में चल रही विश्व्यापी समस्या ‘कोरोना वायरस‘ से सभी भली-भाँति परिचित है, कभी-कभी हमारी उन्नति ही हमारी अवनति का कारण बनती है, शक्तिशाली और विकसित देशों पर भी इस वायरस का प्रकोप बना हुआ हैं, सम्पूर्ण विश्व में लाकडॉउन है हर सफल मनुष्य अपने घर में एक कैदी की तरह रह रहा है। पर्यावरण का वर्चस्व देखिए जो मनुष्य पशु, पक्षियों को कैद करके रखते थे, आज प्रकृति ने उन्हें कैद होने पर मजबूर कर दिया और वहीं प्रकृति से जन्में दूसरे प्राणी पशु, पक्षी, जीव, जन्तु अब स्वतंत्र हैं, जो गौरेया मानवीय तकनीकी के कारण विलुप्त हो रही थी, कई वर्षां बाद फिर से उनकी चहचहाट सुनाई दे रही हैं, मानव भी पर्यावरण का ही हिस्सा है अगर हम पर्यावरण को नुकसान पहुँचाएगें तो कष्ट भी हमें ही उठाना होगा। 


शहरों की तुलना में ग्रामीण क्षेत्र आज भी सुरक्षित हैं, क्योंकि ग्रामीणों ने हमेशा प्रकृति और पर्यावरण को महत्ता दी है इसलिए आज भी वह सुरक्षित हैं। अल्पज्ञ होते हुए भी ग्रामीणों ने इस तथ्य को भली-भाँति साबित कर दिया की वो हमसे ज्यादा सफल हैं। भले ही शहरों ने तकनीक और वैज्ञानिक क्षेत्र में कितनी भी प्रगति कर ली हो, लेकिन वास्तव में ग्रामीण ही हैं जिन्होंने प्रकृति के लिए पर्यावरण की रक्षा की है। मौसम भविष्यवाणी, तकनीकी विकास के बावजूद भी, कई बार प्राकृतिक आपदाओं को रोकने में हम असफल रहे हैं, वर्तमान युग में बाढ़, सुनामी, चक्रवात और भूकंप के रूप में प्राकृतिक आपदाएं मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही उत्पन्न होती हैं, जिसे मनुष्यों द्वारा तकनीकी व्यवस्थाओं ने उत्पन्न किया है इसलिए हमें ही अपनी प्रकृति का ध्यान अपनी माँ की तरह ही रखना होगा, तभी हमारा पर्यावरण बेहतर हो पायेगा। 



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