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देश की सबसे सम्मानित चाय पीनी है, तो जाइये दिल्ली


नई दिल्ली / भारत ने इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हुए एशियन गेम्स में अब तक का अपना सबसे अच्छा प्रदर्शन करते हुए ६९ मेडल जीते। इनमें से कुछ खिलाड़ियों को जहां इनाम के तौर पर करोड़ों का राशि देने का वादा किया है, जिससे वे खेल में अपने सपने को पूरा कर सकेंगे। वहीं कुछ को अपने पुराने काम पर लौटना पड़ा है। ऐसी ही एक कहानी भारत को कांस्य पदक दिलाने वाले हरीश कुमार की है।
हरीश कुमार एशियन गेस्म में सेपक टकरा में कांस्य पदक जीतने वाली टीम के सदस्य थे। हरीश दिल्ली के मजनू का टीला में अपने पिता की दुकान पर चाय बेचते हैं। इंडोनेशिया से लौटने के बाद हरीश अपने काम में जुट हैं और अपने पिता का हाथ बंटा रहे हैं। उनके घर की आजीविका इस चाय की दुकान पर टिकी है। हरीश की माने तो उनका परिवार बड़ा है और आय का स्रोत कम है। हरीश ने कहा कि मैं चाय की दुकान पर पिता की मदद करता हूं। इसके साथ ही २ बजे से ६ बजे तक चार घंटे खेल का अभ्यास करता हूं। उन्होंने कहा कि परिवार के बेहतर भविष्य के लिए अच्छी नौकरी करना चाहता हूं। हरीश की मां ने कहा कि हमने बड़े संघर्ष से अपने बच्चों को बड़ा किया है। हरीश के पिता ऑटो ड्राइवर हैं और साथ में हमारी एक चाय की दुकान है। जिसमें पति के साथ बेटा भी काम करता है। मैं अपने बेटे की सफलता में सहयोग के लिए सरकार और कोच हेमराज का धन्यवाद देती हूं। यह बताते हुए कि वह इस खेल में कैसे पहुंचे, हरीश ने कहा कि २०११ की बात है जब उन्होंने अपने कोच के साथ पहली बार यह खेल खेला था। मैंने २०११ से इस खेल को खेलना शुरू कर दिया। मेरे कोच हेमराज ने मुझे इस खेल में लाया। हरीश ने कहा कि हम भी टायर के साथ खेला करते थे जब मेरे कोच हेमराज ने मुझे देखा और मुझे स्पोट्र्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एसएआई) में ले गए। इसके बाद मुझे मासिक फंड और किट मिलना शुरू हुआ। मैं हर दिन अभ्यास करता हूं और अपने देश के लिए और अधिक पुरस्कार लाने के लिए इसे जारी रखूंगा। 

08 September 2018


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