निजी स्कूलों में दाखिले शुरू, कमीशन खोरी से टूट रही अभिभावकों की कमर
कानपुर संवाददाता विशाल तिवारी। स्कूलों में शिक्षा के नाम पर कारोबार ही नहीं हो रहा बल्कि बेधड़क लूट मची है। मनमानी फीस वसूलने के साथ किताबों, ड्रेस, स्टेशनरी के नाम पर भी अभिभावकों की जेब से मनमानी पैसे ऐंठे जा रहे हैं। स्कूल शिक्षा में एक समानता लाने का प्रदेश सरकार का सपना अधूरा होता नजर आ रहा है। नया सत्र शुरू होने के साथ बाजार में किताबों की बिक्री शुरू हो गई है। शहर में स्कूलों से सांठ-गांठ कर किताब विक्रेता मनमाफिक दामों में छोटी कक्षाओं की किताबें बेच रहे हैं।
जानकारों के अनुसार किताब-कॉपियों के जरिए लूट का खेल निजी प्रकाशक, वितरक व स्कूलों की मिलीभगत से चल रहा है। मोटे कमीशन और कमाई के फेर में पहले चहेता प्रकाशक चुना जाता है। फिर वितरक, स्कूलों का कमीशन जोड़कर किताब का अंकित मूल्य तय किया जाता है। जो किताब 500 रुपए में छात्र को बेची जा रही है, उसकी वास्तविक कीमत 100—150 रुपए के बीच है। मगर स्कूल अपने कमीशन के कारण खुद किताबें बेच रहे हैं या दुकानें तय कर अभिभावकों पर दबाव बना रहे हैं।
आई० सी० एस० ई० की कक्षा 1 से 8 वीं तक की किताबें बाजार में 210 रुपये 250 रुपए में मिल रही है। वहीं आई० सी० एस० ई० की कक्षा 1 से 8 वीं तक की किताबें बाजार में 500 रुपये से 1500 रुपए में आ रही हैं। आई० सी० एस० ई० का पाठ्यक्रम लागू कर निजी स्कूल संचालक बुक सेलर्स के साथ मिलकर कमीशन का खेल कर रहे हैं। इन किताबों के बढ़े दामों में स्कूल संचालक का शेयर होने की बात कुछ बुक सेलर्स भी दबी जुबान से स्वीकार कर रहे है। इंडियन सार्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन ने सत्र 2018-19 से स्कूलों में आई० सी० एस० ई० किताबें लागू करने का आदेश दिया है। वहीं जिला प्रशासन हर साल निजी स्कूलों को किताबों का बोझ कम करने व सस्ती कीमत की किताबें शुरू करने का आदेश देता चला आ रहा है। इसके बाद भी स्कूल संचालक कक्षा 1 में पांच से छह या इससे अधिक किताबें चला रहे हैं। जबकि आई० सी० एस० ई० में तीन से चार किताबें ही चलाई जा रही हैं। इस वजह से अभिभावकों की जेब खाली हो रही है। बाजार में कई प्रकार के प्रकाशनों की किताबें आ रही हैं। हर प्रकाशकों के दामों में अंतर है। निजी स्कूल संचालक इन प्रकाशकों को स्टैंडर्ड प्रकाशक बताकर अभिभावकों को गुमराह कर रहे हैं। जबकि इन प्रकाशकों ने शहर के स्कूल संचालकों से 50 फीसदी कमीशन की सेटिंग कर रखी है। इसलिए स्कूल प्रबंधन मनमर्जी के प्रकाशकों की किताबें पढ़ा रहे हैं। एलकेजी, यूकेजी व कक्षा 1 से 8 वीं तक के छात्रों के बैग में 5-6 बुक खरीदने के लिए अभिभावक मजबूर हो रहे हैं। इन्हीं प्रकाशकों की कॉपीयां भी बाजार में बिक रही है। कई बुक सेलर्स ने कॉपियों में भारी मुनाफा होने के कारण किताबें खरीदने के साथ-साथ कॉपियां खरीदना भी अनिवार्य कर रखा है।
स्कूल संचालकों द्वारा अभिभावकों को निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीदने पर मजबूर किया जा रहा है। जिस कारण अभिभावक कमिशन के खेल का शिकार हो रहे हैं।
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