छात्रों के सपनों को लूट रहे कोचिंग संचालक
कानपुर। उम्र यहीं कोई १८-१९ साल कपड़े जींस और टीशर्ट कन्धे पर बैग लगभग यही
हुलिया हर कोचिंग पढऩे वाले छात्र का होता है। आंखें में सुनहले सपने सजाये
इन युवकों के सपनों को अपना व्यापार बनाने वाले कोचिंग संचालक इनके भविष्य
के साथ खिलवाड़ करने के साथ-साथ इनका आर्थिक शोषण भी कर रहे हैं। काकादेव
में कुकुर मुत्ते की तरह उग आये इन कोचिंगों में पढ़ाने वाले क्या खुद इस
काबिल हैं कि वो इंजीनियरिंग की प्रवेश परीक्षा पास कर सकें। इन कोचिंगों
का इतिहास बहुत पुराना नहीं है।
सन १९९० तक शहर में कोचिंगों का इतना
प्रचार प्रसार नहीं था तब यहाँ मात्र तीन कोचिंग क्लासेज हुआ करतीं थी
आई0आई0टी0 सरकिल, अहसा ओर प्रान क्लासेज। सन ९५ तक इन्हीं तीनों ने शहर पर
राज किया। इन कोचिंगों में प्रवेश भी आसानी से मिल जाता था और बैच में
छात्रों की संख्या भी १५-२० रहती थी। इनको चलाने वाले संचालक इण्टर की
क्लासेज भी पढ़ाते थे और ज्यादातर शिक्षक हुआ करते थे। आई0आई0टी0 सरकिल के
सरिल फरटेडो के अमरीका चले जाने के बाद ये सभी लगभग बन्द होने लगीं थी तभी
९५ में अजय ने काकादेव मण्डी में प्रवेश किया और फिजिक्स पढ़ाना शुरू किया।
अजय के पीछे-पीछे ही पंकज अग्रवाल, राज कुशवाहा भी मण्डी पहुँच गये। इस तरह
९६ से काकादेव बाकायदा कोचिंग मण्डी कहलाने लगा और इसी के साथ शुरू हुई
प्रतिस्पर्धा की वो जंग जो आज भी बदस्तूर जारी है। सन २००० तक काकादेव में
२५-३० नामी गिरामी कोचिंग खुल चुकी थी। बाहर से आने वाले छात्रों के लिये
हास्टल खुलने लगे थे और खाने के लिये टिफिन सर्विस प्रारम्भ हो गयी थी।
यही वो समय था जब इन कोचिंगों में एडमीशन के लिये मारामारी शुरू हुई।
संचालाकों ले छात्रों को लुभाने के लिये विज्ञापन देने प्रारम्भ कर दिये
थे। जगह-जगह दलालों ने अपना जाल फैला रखा था और छात्र शिक्षक का नाता एक
व्यवसाय में तब्दील हो चुका था। शहर के अन्य हिस्सों में पढ़ा रह बबोल
मुखर्जी, ए0के0 सिंह जैसे शिक्षक भी काकादेव आ गये थे। पहले कोचिंग पढाने
वाले या तो बीटेक होते थे या पेशे से अध्यापक पर अब ज्यादातर संचालकों ने
बीएससी पास लडक़ों से ही काम चला रखा है।ये बच्चों का क्या भविष्य बनायेगें ये तो प्रभु ही जाने पर इन कोचिंग वालों का बैंक बैलेंस हर साल दुगना होता जा रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं रोजाना अखबारों में छपने वाले लाखों के विज्ञापन ज्यादातर झूठ पर आधारित होते हैं। जो किसी प्रतियोगिता परीक्षा में चुन लिया गया उसे पैसे देकर अपनी कोचिंग का छात्र बताया जाने लगता है। कभी कभी तो एक ही छात्र का फोटो कई कोचिंग वाले छपवा देते इतना ही होता तो भी गनीमत थी पर ये कोचिंग संचालक प्रतिस्पर्धा करते करते ईष्र्या द्वेष और घात प्रतिघात पर उतर आये हैं। आज छात्र को यहाँ सिवाए शोषण के कुछ प्राप्त नहीं हो रहा है। एक क्लास में २००-५०० तक बच्चे होते हैं और टीचर माइक लगा कर पढ़ाता है जो बच्चे की समझ में नहीं आता, इसके बाद मिलती हैं डाटा शीट जिस पर चन्द सवाल और उनके जवाब होते हैं, इस पर फीस होती है ५० हजार। ये छात्रों का शोषण नहीं तो और क्या है। इस तरह भ्रामक प्रचार करक छात्रों को लुभाना फिर उनके भविष्य से खिलवाड़ करना कहां तक जायज है।
अभिभावकों को अपने बच्चे को कोचिंग कराने से पूर्व कोचिंग के विषय में पूरी जानकार कर लेनी चाहिये वरना उनका पैसा तो बरबाद होगा ही बच्चे का भविष्य भी चौपट हो जायेगा।ं
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